कृषि विज्ञान केन्द्र-रीवा के कार्यक्रम समन्वयक डॉ अजय कुमार पांडेय़ ने
कृषक भाईयों और बहनों से आह्वान किया है कि खरीफ की तैयारी के पहले कृषि तकनीकी के
योजना बनाने के लिये और नवीनतम जानकारी के लिये केन्द्र पर पधारें और वैज्ञानिक अनुशंषा मुफ्त पायें . आगे आपने कहा के बीज की जाँच करने के लिये गीले बोरे में सौ
दाने बिछा कर दो दिन तक गीला रखें. यदि 75 दाने से अधिक दाने अंकुरित होते हैं तो
बीज की अनुषंशित बीज दर का उपयोग करें.यदि बीज पुराना है तो कम दाने अंकुरित होंगे
जिसे बदल कर नया बीज लेने में ही समझ्दारी है . वैसे भी प्रति तीन सालों में बीज का ओज घट जाता है अतः उत्पादन मे कमी
देखी जाती है.
महिला कृषक तकनीक के वैज्ञानिक डॉ. चद्रजीत सिंह ने जानकारी दी कि खरीफ के मौसम में सबसी बडी
समस्या खरपतवार, दीमक और कीड़े की होती है और यदि कृषक बहनें और किसान भाई इस समस्या से बचना
चाहते हैं तो वर्षा ऋतु में घर के पीछे गढ्ढे (घूरे) में पिछ्ले साल के एकत्रित से गर्म गोबर को निकाल
कर खेत में न डालें बल्कि अभी तुरंत घूरे को खोद कर गोबर को ज़मीन के ऊपर इकट्ठा कर
ढेर बनायें और पानी से तर कर दें. लगभग 15 दिन बाद फिर इस घूरे को फिर सींचें. एक
महिने से डेढ़ महिने में यह गोबर ठंडा हो जायेगा और इसमें से भाप निकलना बन्द हो
जायेगी. तब इसे खेत में डालें. जिससे खेत में रुपये में 60-70 पैसे तक खरपतवार दीमक
और कीड़ों की संख्या में कमी आ जायेगी.
कृषि विस्तार वैज्ञानिक डॉ. किंजल्क सी. सिंह ने जानकारी दी कि तीन साल
में नौतपे के पूर्व खेत की गहरी जुताई करवायें जिससे धूप की सीधी किरणे मृदा पर पड़ने के कारण खरपतवार के बीज
नष्ट हो जाते हैं और खरपतवार की संख्या में भारी कमी आ जायेगी. आपने आगे बताया कि
रबी के मौसम में किस खेत में दल्हन फसल बोई गईं थीं कृषक भाई उन खेतों में धान्य
फसलें बोयें और जहाँ धान्य फसलें बोई थीं उन खेतों में दलहनी फसलों की बोनी करें
जिससे मृदा पोषण का लाभ फसलों को मिलेगा और पैदावार में वृद्धि होगी. खरीफ की बोनी
फफून्दनाशक दवा और जैव ऊर्वरक से बीज के उपचार के बाद ही करें.